भीष्म पितामह का मकर संक्रांति पर प्राण त्यागने का कारण और इसका आध्यात्मिक महत्व

भीष्म पितामह का मकर संक्रांति पर प्राण त्यागने का कारण और इसका आध्यात्मिक महत्व

Uttarayan ka Adhyatmik Mahatva aur Moksha Prapti mein iski Bhumika | भारतीय महाकाव्य महाभारत (Mahabharata) में भीष्म पितामह का चरित्र धर्म, कर्तव्य और त्याग का प्रतीक है। महाभारत के युद्ध के दौरान, भीष्म पितामह ने शरशय्या पर लेटे हुए अपनी मृत्यु को मकर संक्रांति (Makar Sankranti) तक स्थगित किया। यह घटना अपने आप में अद्वितीय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइए विस्तार से समझते हैं कि उन्होंने मकर संक्रांति के दिन ही अपने प्राण क्यों त्यागे।

मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति हिंदू पंचांग के अनुसार एक विशेष खगोलीय घटना है, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि (Capricorn) में प्रवेश करता है। इसे उत्तरायण (Uttarayan) की शुरुआत माना जाता है, जो छह महीने तक चलता है। उत्तरायण को हिंदू धर्म में शुभ समय माना गया है। यह समय ईश्वर की ओर बढ़ने और आत्मा की मुक्ति (Moksha) के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है।

भीष्म पितामह का वरदान

भीष्म पितामह को उनके पिता महाराज शांतनु ने इच्छा मृत्यु (Ichha Mrityu) का वरदान दिया था। इसका अर्थ यह था कि भीष्म अपनी मर्जी से मृत्यु को स्वीकार कर सकते थे। उन्होंने शरशय्या (Bed of Arrows) पर लेटे हुए यह निश्चय किया कि वे अपनी मृत्यु उत्तरायण की शुरुआत यानी मकर संक्रांति के दिन ही करेंगे।

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धार्मिक और आध्यात्मिक कारण

  • उत्तरायण का आध्यात्मिक महत्व- हिंदू शास्त्रों के अनुसार, उत्तरायण को देवताओं का दिन (Divine Day) और दक्षिणायन को देवताओं की रात (Divine Nights) कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति को मोक्ष (Salvations) मिलता है और उसे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। भीष्म पितामह एक ज्ञानी और धर्मपरायण व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन का समर्पण धर्म के प्रति किया था और मोक्ष प्राप्त करना ही उनका अंतिम लक्ष्य था।
  • धर्म और कर्तव्य का पालन भीष्म पितामह ने अपने जीवन में हमेशा धर्म का पालन किया। उनकी मृत्यु भी धर्म के नियमों के अनुसार हुई। मकर संक्रांति के दिन को उन्होंने इसलिए चुना क्योंकि यह दिन शुभ और मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे उपायुक्त था।
  • आत्मा की यात्रा का सही समय भारतीय दर्शन के अनुसार, आत्मा की यात्रा का सही समय खगोलीय घटनाओं और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से प्रभावित होता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की स्थिति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा आत्मा की उच्चतम स्थिति तक पहुंचने में सहायक होती है।

महाभारत में मकर संक्रांति पूर्व का महत्व

महाभारत के युद्ध के दौरान भीष्म पितामह कौरवों की ओर से लड़े। युद्ध के दौरान अर्जुन ने उन्हें शरशय्या पर लेटा दिया। लेकिन उन्होंने अपनी मृत्यु को तुरंत स्वीकार नहीं किया। शरशय्या पर लेटे हुए उन्होंने पांडवों और अन्य उपस्थित व्यक्तियों को धर्म, नीति और कर्तव्य का उपदेश दिया। उनके द्वारा दिए गए उपदेश शांतिपर्व (Santi Parva) के रूप में प्रसिद्ध हैं। मकर संक्रांति के दिन जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है, तब भीष्म पितामह ने अपनी देह का त्याग किया। उन्होंने अपनी चेतना को उच्च स्तर पर स्थिर रखते हुए प्राण त्यागे। यह उनकी इच्छा मृत्यु के और उनके अध्याtmik ज्ञान का परिचायक है।

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शरशय्या पर भीष्म ने दिए उपदेश

भीष्म पितामह ने शरशय्या पर लेटे हुए कई महत्वपूर्ण दिए, जो आज भी प्रासंगिक हैं:

  • राजधर्म (Raj Dharma): उन्होंने राजा के कर्तव्यों और आदर्श शासन के सिद्धांत पर प्रकाश डाला।
  • आचारधर्म (Ethics): उन्होंने बताया कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालना करते हुए नैतिकता का पाल करना चाहिए।
  • मोक्ष का मार्ग: उन्होंने आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए सही मार्गदर्शन दिया।

भीष्म पितामह का मकर संक्रांति के दिन मृत्यु को करना केवल एक खगोली घटना नहीं थी, बल्कि यह उनकी गहन आध्यात्मिकता का प्रतीक था। उनका यह निर्णय निम्नलिखित तथ्यों को उजगर करते हैं:

  • आत्मा की यात्रा का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार।
  • धर्म और आध्यात्मिक ज्ञान की पराकाष्ठा।
  • जीवन और मृत्यु के प्रति उनकी संतुलित दृष्टि।

भीष्म पितामह की शिक्षा

यह घटना हमें सिखती है कि जीवन का उद्देश्य केवल सांसाriक सुख नहीं है, बल्कि आत्मा की उन्नति और मोक्ष प्राप्ति। मकर संक्रांति का समय इस यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त है। भीष्म पितामह का मकर संक्रांति के दिन प्राण त्यागना एक महान आध्यात्मिक घटना है। यह उनके ज्ञान, त्याग और धर्मपरायणता का प्रतीक है। मकर संक्रांति न केवल एक खगोलीय घटना है, बल्कि आत्मा की उन्नति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी है। भीष्म पितामह (Bhishma Pitamah) का यह निर्णय हमें सिखाता है कि धर्म और आध्यात्मिकता का पालन करते हुए अपने जीवन का उद्देश्य पूर्ण करना ही सच्चा मोक्ष है। Uttarayan ka Adhyatmik Mahatva aur Moksha Prapti mein iski Bhumika


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