70 घंटे काम का सच या सिर्फ जिद? कहीं आप भी तो नहीं हो रहे ‘बर्नआउट सिंड्रोम’ के शिकार! जानें एक्सपर्ट्स ने बताया सेहत के लिए कितने घंटे हैं काफी

70 घंटे काम का सच या सिर्फ जिद? कहीं आप भी तो नहीं हो रहे ‘बर्नआउट सिंड्रोम’ के शिकार! जानें एक्सपर्ट्स ने बताया सेहत के लिए कितने घंटे हैं काफी

Work Life Balance | आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में ‘वर्क लाइफ बैलेंस’ एक ऐसा मुद्दा है जिस पर लगातार बहस जारी है। हाल ही में इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने 70 घंटे प्रति सप्ताह काम करने की वकालत की, वहीं एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने तो रविवार समेत 90 घंटे काम करने की बात कह डाली। लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई इतना काम हमारी सेहत के लिए सही है? Work Life Balance

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय इन चौंकाने वाले सुझावों से बिल्कुल अलग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक और स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार सौम्या स्वामीनाथन साफ कहती हैं कि अच्छी सेहत के लिए काम के साथ-साथ भरपूर आराम भी बेहद ज़रूरी है। उनका मानना है कि लंबे समय तक काम करने से न सिर्फ हमारी काम करने की क्षमता घटती है, बल्कि यह हमारी सेहत को भी लंबे समय में नुकसान पहुंचा सकता है।

डॉ. स्वामीनाथन ज़ोर देकर कहती हैं कि हमें अपने शरीर की आवाज़ सुननी चाहिए और पहचानना चाहिए कि हमें आराम की ज़रूरत कब है। लगातार काम करने और पर्याप्त नींद न लेने से सोचने-समझने की शक्ति और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। यही वजह है कि आज बड़ी संख्या में कर्मचारी ‘बर्नआउट सिंड्रोम’ का शिकार हो रहे हैं।

क्या है बर्नआउट सिंड्रोम?

डॉ. स्वामीनाथन बताती हैं कि बर्नआउट एक ऐसा सिंड्रोम है जो रोज़ाना बहुत ज़्यादा काम से जुड़े तनाव के कारण होता है। इसके परिणामस्वरूप लगातार थकान महसूस होती है, काम में प्रदर्शन गिर जाता है और व्यक्ति को अपने काम से निराशा या अलगाव महसूस होने लगता है। यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करता है।

महामारी के दौरान हमने देखा कि कैसे स्वास्थ्यकर्मी बिना पर्याप्त नींद और भारी तनाव में लगातार काम करते रहे, जिसका नतीजा यह हुआ कि कुछ लोगों ने तो अपना पेशा ही छोड़ दिया। कुछ समय के लिए ज़्यादा घंटे काम करना शायद ठीक हो, लेकिन लंबे समय तक ऐसा करना सेहत के लिए बेहद हानिकारक है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कार्यस्थल पर तनाव की स्थिति को नज़रअंदाज़ किया जाता है, तो इससे कर्मचारियों में असंतोष बढ़ता है और वे बिना वजह छुट्टी लेने लगते हैं। यह ‘अपोजिट प्रेजेंटिज्म’ को भी जन्म दे सकता है, जहां कर्मचारी ऑफिस में तो मौजूद होते हैं लेकिन उनकी उत्पादकता लगभग शून्य हो जाती है।

कहीं आप भी तो नहीं हैं बर्नआउट का शिकार? पहचानें ये संकेत (ICD-11 के अनुसार):

इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज (ICD-11) के 11वें संशोधन में बर्नआउट के कुछ मुख्य संकेत बताए गए हैं जिन पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है:

  1. काम के समय ऊर्जा में लगातार कमी या थकावट महसूस होते रहना।
  2. अपनी नौकरी को लेकर नकारात्मक भावनाएं आना और अक्सर काम पर न जाने का मन करना।
  3. बर्नआउट से प्रभावित लोग ज़्यादा चिड़चिड़े या ऊबे हुए महसूस कर सकते हैं।

एक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि वेतन में असमानता और ऑफिस की तरफ से मानसिक सपोर्ट न मिलने से बर्नआउट का जोखिम बढ़ जाता है।

तो फिर सेहत के लिए कितने घंटे काम करना है सही?

मुंबई के एक अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन के डॉक्टर रजत धीर के अनुसार, काम के घंटों का कोई ‘वन-फिट्स-ऑल’ फॉर्मूला नहीं हो सकता। यह काम की प्रकृति और व्यक्ति की क्षमता पर निर्भर करता है। हालांकि, ज़्यादातर शोध और विशेषज्ञ यह मानते हैं कि प्रति सप्ताह 42-48 घंटे (यानी रोज़ाना लगभग 7-8 घंटे) काम करना अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सबसे बेहतर है। डॉक्टर धीर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि काम के घंटों से ज़्यादा उसकी गुणवत्ता मायने रखती है। शरीर को बेहतर ढंग से काम करने के लिए नींद और मानसिक शांति की ज़रूरत होती है।

लंबे समय तक बैठना भी है खतरनाक!

लंबे समय तक एक जगह बैठे रहना भी हमारी सेहत के लिए कई तरह से नुकसानदायक है। यह गतिहीन जीवनशैली मधुमेह, हृदय रोग, वज़न बढ़ने, अवसाद और डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) जैसी गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ा सकती है।

एक मार्केट रिसर्च फर्म IPSOS द्वारा 2023 में किए गए अध्ययन में पाया गया कि भारत में हर दो में से एक कॉर्पोरेट कर्मचारी को किसी न किसी मानसिक स्वास्थ्य समस्या का खतरा है, और महिलाओं में यह जोखिम पुरुषों से ज़्यादा देखा गया। प्लसवन जर्नल में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, जो लोग रोज़ाना 7-8 घंटे लगातार बैठे रहते हैं, उनमें डेमेंशिया का खतरा अधिक हो सकता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि लगातार बैठे रहने की आदत समय के साथ मस्तिष्क की नई चीज़ों को याद रखने की क्षमता को कमज़ोर कर सकती है।

इसलिए, चाहे काम कितना भी ज़रूरी क्यों न हो, अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत को नज़रअंदाज़ न करें। शरीर के संकेतों को समझें और स्वस्थ जीवनशैली बनाए रखने के लिए पर्याप्त आराम को भी प्राथमिकता दें।


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