योगिनी एकादशी 2025: व्रत कथा, पूजा विधि – पूर्ण फल प्राप्ति का रहस्य

योगिनी एकादशी 2025: व्रत कथा, पूजा विधि – पूर्ण फल प्राप्ति का रहस्य

Yogini Ekadashi Vrat Katha | आज, 21 जून 2025, शनिवार को आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है, जिसे योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह पवित्र व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे करने से सभी पापों का नाश होता है, साथ ही परम पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत तभी पूर्ण माना जाता है, जब इसके साथ व्रत कथा का पाठ किया जाए। यह कथा न केवल आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह भक्तों को भक्ति और नैतिकता का मार्ग भी दिखाती है। इस लेख में हम योगिनी एकादशी की व्रत कथा, इसका महत्व, पूजा विधि, और इससे जुड़े अन्य पहलुओं को विस्तार से जानेंगे। Yogini Ekadashi Vrat Katha

योगिनी एकादशी का महत्व

योगिनी एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन के सभी पापों से मुक्ति पाने का एक प्रभावी साधन माना जाता है। पुराणों के अनुसार, इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और जीवन में सुख-समृद्धि भी लाता है। Yogini Ekadashi Vrat Katha

योगिनी एकादशी का संबंध भगवान शिव और विष्णु दोनों की भक्ति से है, क्योंकि कथा में शिव भक्त हेममाली की कहानी का उल्लेख है, जिसे भगवान विष्णु की कृपा से मुक्ति मिली। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो अपने जीवन में कष्टों, रोगों, और पापों से मुक्ति चाहते हैं। इस दिन अनफा और कलानिधि योग का संयोग भी इसे और अधिक शुभ बनाता है। Yogini Ekadashi Vrat Katha

योगिनी एकादशी व्रत कथा

युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण का संवाद

पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर ने एक बार भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे वासुदेव! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम और महत्व क्या है? कृपया इसका वर्णन करें।”

श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “हे नृपश्रेष्ठ! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘योगिनी एकादशी’ कहा जाता है। यह व्रत बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाला और संसार सागर से पार उतारने वाली नौका के समान है। यह तीनों लोकों में श्रेष्ठ और पुण्यदायी है। अब मैं तुम्हें इसकी कथा सुनाता हूँ।”

हेममाली की कहानी

प्राचीन काल में अलकापुरी में राजाधिराज कुबेर का शासन था। कुबेर भगवान शिव के परम भक्त थे और सदा उनकी भक्ति में लीन रहते थे। उनके यहाँ हेममाली नामक एक यक्ष सेवक था, जिसका कार्य प्रतिदिन मानसरोवर झील से कमल के फूल लाकर भगवान शिव की पूजा के लिए कुबेर को देना था। हेममाली की पत्नी विशालाक्षी अत्यंत सुंदर थी, और हेममाली उस पर बहुत आसक्त था। Yogini Ekadashi Vrat Katha

एक दिन हेममाली अपनी पत्नी के प्रेम में इतना डूब गया कि वह मानसरोवर से फूल लाने के बाद भी कुबेर के भवन में नहीं गया। वह अपनी पत्नी के साथ रमण करने में व्यस्त रहा, जिसके कारण भगवान शिव की पूजा में देरी हो गई। कुबेर ने दोपहर तक फूलों की प्रतीक्षा की, लेकिन जब पूजा का समय बीत गया, तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने अपने सेवकों से हेममाली के अनुपस्थित होने का कारण पूछा। सेवकों ने बताया, “हे राजन्! हेममाली अपनी पत्नी के प्रेम में आसक्त होकर घर में ही रमण कर रहा है।”

यह सुनकर कुबेर ने हेममाली को तुरंत बुलवाया। भयभीत हेममाली उनके समक्ष उपस्थित हुआ। कुबेर की आँखें क्रोध से लाल हो गईं। उन्होंने कहा, “हे दुष्ट! तूने भगवान शिव की पूजा में लापरवाही की और उनकी अवहेलना की। इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू कोढ़ र4241ोग से पीड़ित होगा, अपनी प्रिय पत्नी से वियुक्त होगा, और इस स्थान से भ्रष्ट होकर दर-दर भटकेगा।”

श्राप के प्रभाव से हेममाली तुरंत कोढ़ रोग से ग्रस्त हो गया और उसका शरीर पीड़ा से भर गया। वह अपनी पत्नी से अलग होकर दुखी मन से भटकने लगा। लेकिन भगवान शिव की भक्ति के प्रभाव से उसकी स्मरण शक्ति बनी रही, और वह अपने पाप को याद रखता था।

मार्कण्डेय ऋषि से मुलाकात

भटकते-भटकते हेममाली मेरु पर्वत के शिखर पर पहुँचा, जहाँ उसे महान तपस्वी मार्कण्डेय ऋषि के दर्शन हुए। हेममाली ने दूर से ही ऋषि के चरणों में प्रणाम किया। उसे भयभीत और दुखी देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने दयालु स्वभाव के कारण उसे निकट बुलाया और पूछा, “हे यक्ष! तुझे यह कोढ़ रोग कैसे हुआ? तू इतना दुखी और निंदनीय क्यों प्रतीत हो रहा है?”

हेममाली ने अपनी पूरी कहानी सच्चाई के साथ सुनाई। उसने बताया कि कुबेर के श्राप के कारण वह इस दयनीय स्थिति में है और अब मुक्ति का उपाय खोज रहा है। मार्कण्डेय ऋषि ने उसकी सच्चाई से प्रसन्न होकर कहा, “तुमने सत्य बोला है, इसलिए मैं तुम्हें एक कल्याणकारी व्रत का उपदेश देता हूँ। तुम आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ रोग निश्चित रूप से ठीक हो जाएगा।”

हेममाली की मुक्ति

मार्कण्डेय ऋषि के वचनों से हेममाली को नई आशा मिली। उसने ऋषि के चरणों में दण्डवत प्रणाम किया और उनके निर्देशानुसार योगिनी एकादशी का व्रत विधि-विधान से किया। व्रत के प्रभाव से उसका कोढ़ रोग पूरी तरह ठीक हो गया, और वह पहले की तरह स्वस्थ, सुंदर, और सुखी हो गया। उसने कुबेर और भगवान शिव की सेवा पुनः शुरू की और अपने जीवन को धन्य बनाया।

कथा का फल

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा, “हे नृपश्रेष्ठ! योगिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य प्रदान करता है। जो व्यक्ति इस व्रत को करता है और इसकी कथा को पढ़ता या सुनता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है।”

योगिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि

योगिनी एकादशी का व्रत करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

  1. प्रातःकाल स्नान: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  2. व्रत संकल्प: भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। संकल्प में व्रत का उद्देश्य (पापों से मुक्ति, पुण्य प्राप्ति) स्पष्ट करें।

  3. पूजा स्थल की तैयारी: एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसे फूलों, चंदन, और कपूर से सजाएँ।

  4. पूजा सामग्री: धूप, दीप, नैवेद्य (मिठाई, फल), तुलसी पत्र, और पंचामृत तैयार करें।

  5. विष्णु पूजा: भगवान विष्णु को तुलसी पत्र, चंदन, और फूल अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।

  6. व्रत कथा पाठ: उपरोक्त योगिनी एकादशी की कथा को पढ़ें या सुनें।

  7. आरती और प्रसाद: पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

  8. व्रत नियम: दिनभर निराहार (उपवास) रहें। यदि संभव न हो तो फलाहार या एक समय सात्विक भोजन करें।

  9. पारणा: अगले दिन (द्वादशी तिथि) सूर्योदय के बाद पारणा करें। ब्राह्मणों को भोजनदान करें और दक्षिणा दें।

योगिनी एकादशी के नियम और सावधानियाँ

  • व्रत के दिन तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस, आदि) से बचें।

  • क्रोध, झूठ, और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।

  • पूजा और कथा पाठ में पूरी श्रद्धा और भक्ति रखें।

  • गर्भवती महिलाएँ, रोगी, या वृद्ध लोग अपनी क्षमता के अनुसार व्रत करें।

  • व्रत के दौरान जल, फल, या दूध का सेवन किया जा सकता है।

योगिनी एकादशी का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व

योगिनी एकादशी का व्रत न केवल व्यक्तिगत पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और दान-पुण्य को भी बढ़ावा देता है। इस दिन भक्त दान, ब्राह्मण भोजन, और गरीबों की सहायता करते हैं, जिससेसमाज में सकारात्मकता फैलती है। यह व्रत आत्म-अनुशासन, संयम, और भक्ति का प्रतीक है, जो व्यक्ति को आध्यात्मिक और मानसिक रूप से सशक्त बनाता है।

योगिनी एकादशी का व्रत एक पवित्र और पुण्यदायी अनुष्ठान है जो भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद प्रदान करता है। हेममाली की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और सही मार्गदर्शन से कोई भी पाप या कष्ट से मुक्ति पा सकता है। इस व्रत को विधि-विधान से करने और कथा का पाठ करने से न केवलआध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि भी प्राप्त होती है। Yogini Ekadashi Vrat Katha

नोट: यह व्रत कथा और पूजा विधि सामान्य जानकारी के लिए है। व्यक्तिगतपरिस्थितियों के लिए किसी विद्वान या पुरोहित से परामर्श लें। Yogini Ekadashi Vrat Katha


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